Thursday, November 21st 2024

कवि कुंवर विक्रमादित्य सिंह की एक कविता “प्रेम के मारे प्यारे”

कवि कुंवर विक्रमादित्य सिंह की एक कविता “प्रेम के मारे प्यारे”

प्रेम के मारे प्यारे 

तुमको अपनी सुनने से किसने रोका है 

यह नए नए रसिक बने हो एक धोखा है 

जानेमन एक दिन यूँ मुँह अपना मोड़ेगी 

भावुक हो तुमको कहीं का न छोड़ेगी 

टूटे दिल के टुकड़े लेकर फिर जाना तुम 

अपनी दुर्दशा दिखा उसको तरसाना तुम 

प्रेयसी है व्यथा देख भावो में बह जायेगी 

यह सोच चले थे की आखिर पछ्तायेगी 

तुम मान चले की भाव तुम्हारा सच्चा है

दुनियादारी में मन अभी भी छोटा बच्चा है 

जितने पल अपने प्रेम के तुमने बिता दिए 

उसके लिए पल मौज के उसने बिता लिए 

ऐसा नहीं बस तुमको ही यह रोग है 

इस आकर्षण में खींचते बहुत से लोग हैं 

कोई अपराध नहीं यह नर नारी का मिलन 

दुखी हो तुम और जायज़ भी सीने की जलन

बस यहीं चूक छोटी सी तुम कर जाते हो 

अपनी सुंदरी के हाथों के लट्टू बन जाते हो 

तुमको तो लगता राधा कृष्ण सा रास है 

तुम जैसे कितनो को घुमा रही यह राज़ है

तुम एक पुरुष और वो ठहरी एक नारी है 

दोनों में सोच समझ का अंतर बहुत भारी है 

सोचे वो परख सब कुछ ऐसा वैसा न कर जाऊं 

तुम ठहरे आतुर की उसके लिए मर मिट जाऊं 

– कुंवर विक्रमादित्य सिंह

( प्रेम के मारे बहुत सी आधुनिक युवाओं को समर्पित एक यथार्थपूर्ण व्यावहारिक कविता मैंने दो टूक बिना मिलाये कुछ सब कह डाला है और आशा करता हूँ की मेरे युवा साथी इसका आनंद भी लें और इसका सन्देश भी)