Tuesday, January 14th 2025

मकर संक्रांति : खगोलीय घटना, प्राकृतिक चिकित्सा और आयुर्वेद की दृष्टि से वैज्ञानिक महत्व

मकर संक्रांति : खगोलीय घटना, प्राकृतिक चिकित्सा और आयुर्वेद की दृष्टि से वैज्ञानिक महत्व
  • सूर्य स्नान हड्डियों को मजबूत करता है और रोग प्रतिरोधक क्षमता को बढ़ाता है – डॉ रुचिता उपाध्याय 
हरिद्वार : मकर संक्रांति, भारतीय संस्कृति का एक महत्वपूर्ण पर्व है, जिसे खगोलीय घटनाओं, प्राकृतिक चिकित्सा, और आयुर्वेद के गहरे संदर्भों में देखा जा सकता है। यह दिन सूर्य के मकर राशि में प्रवेश करने और उत्तरायण होने का प्रतीक है। इस परिवर्तन का प्रभाव न केवल हमारे वातावरण पर पड़ता है, बल्कि हमारे शरीर और स्वास्थ्य पर भी गहरा प्रभाव डालता है।
हर साल जनवरी में मकर संक्रांति के दिन सूर्य मकर राशि में प्रवेश करता है और उत्तरायण हो जाता है। खगोलविदों के अनुसार, यह वह समय है जब पृथ्वी की धुरी झुकाव के कारण सूर्य की किरणें उत्तरी गोलार्ध पर अधिक केंद्रित होती हैं। यह दिन से रात तक के अनुपात में बदलाव का आरंभ करता है, जिससे दिन बड़े और रातें छोटी होने लगती हैं। यह खगोलीय घटना न केवल कृषि चक्र को प्रभावित करती है, बल्कि मौसम परिवर्तन और शरीर की जैविक घड़ी (बायोरिदम) पर भी प्रभाव डालती है।

प्राकृतिक चिकित्सा का दृष्टिकोण

प्राकृतिक चिकित्सा एवं योग विज्ञान विशेषज्ञ डॉ. रुचिता त्रिपाठी उपाध्याय (अश्वमेध हेल्थ एवं वैलनेस संस्थान, कनखल, हरिद्वार) बताती हैं कि मकर संक्रांति का यह समय शरीर को रोग प्रतिरोधक क्षमता बढ़ाने के लिए उपयुक्त है। सर्दियों के मध्य में जब तापमान कम होता है, तो सूर्य की किरणें धीरे-धीरे बढ़ने लगती हैं, जो शरीर को नई ऊर्जा और गर्माहट प्रदान करती हैं।

उन्होंने बताया कि इस समय शरीर को संतुलित रखने के लिए निम्न उपाय अपनाए जा सकते हैं

  • सूर्य स्नान : सुबह के समय सूर्य की कोमल किरणों का सेवन करना विटामिन-डी के लिए अत्यधिक लाभकारी है। यह हड्डियों को मजबूत करता है और रोग प्रतिरोधक क्षमता को बढ़ाता है।
  • तिल और गुड़ का सेवन : मकर संक्रांति पर तिल-गुड़ खाने की परंपरा वैज्ञानिक रूप से भी सही है। तिल शरीर को गर्म रखता है और त्वचा को पोषण देता है, जबकि गुड़ पाचन में सहायक होता है और शरीर से विषाक्त पदार्थों को निकालता है।
  • योग और प्राणायाम : सर्दियों के मौसम में शरीर की जड़ता को दूर करने के लिए योगासन और प्राणायाम, विशेषकर सूर्य नमस्कार, अत्यधिक लाभकारी हैं। यह रक्त प्रवाह को सुधारता है और मानसिक शांति प्रदान करता है।

आयुर्वेद में मकर संक्रांति का महत्व

आयुर्वेद विशेषज्ञ डॉ. अवनीश उपाध्याय (वरिष्ठ आयुर्वेद विशेषज्ञ, ऋषिकुल कैंपस, उत्तराखंड आयुर्वेद विश्वविद्यालय) बताते हैं कि मकर संक्रांति केवल खगोलीय घटना नहीं, बल्कि आयुर्वेदिक दृष्टिकोण से भी विशेष महत्व रखती है। सर्दियों के दौरान वात और कफ दोष का प्रभाव शरीर पर अधिक होता है। इस समय खान-पान और दिनचर्या में बदलाव करके स्वास्थ्य को बेहतर बनाया जा सकता है। डॉ. उपाध्याय के अनुसार, मकर संक्रांति पर तिल, गुड़, और मूंगफली का सेवन वात और कफ दोष को संतुलित करता है। साथ ही, शरीर में अग्नि (पाचन क्षमता) बढ़ाने के लिए हल्दी, अदरक, और सोंठ का उपयोग लाभकारी होता है।

आयुर्वेद के अनुसार

  • घी और मसाले : इस मौसम में शरीर को गर्म रखने के लिए घी और गरम मसालों (जैसे दालचीनी, काली मिर्च) का उपयोग करना चाहिए।
  • पंचकर्म और मसाज : तिल के तेल से मालिश करने से त्वचा की नमी बनी रहती है और सर्दी-जुकाम से बचाव होता है।
  • अम्लपित्त और अन्य विकारों से बचाव : गाजर, चुकंदर, और मौसमी सब्जियों का सेवन शरीर को डिटॉक्स करता है।

मकर संक्रांति और स्वास्थ्य : वैज्ञानिक संदेश

मकर संक्रांति केवल एक त्योहार नहीं, बल्कि प्रकृति और शरीर के बीच संतुलन का प्रतीक है। खगोलीय बदलाव से प्रेरित यह पर्व हमें यह सिखाता है कि प्रकृति के साथ सामंजस्य स्थापित करके कैसे स्वस्थ जीवन जिया जा सकता है। मकर संक्रांति का महत्व केवल धार्मिक या सांस्कृतिक नहीं, बल्कि वैज्ञानिक और स्वास्थ्य-संबंधी भी है। सूर्य की ऊर्जा, आयुर्वेदिक आहार, और प्राकृतिक चिकित्सा के माध्यम से यह पर्व हमें स्वास्थ्य और सकारात्मकता का संदेश देता है। आइए, इस पर्व पर प्रकृति के प्रति कृतज्ञता व्यक्त करें और स्वस्थ जीवन के लिए इन पारंपरिक और वैज्ञानिक उपायों को अपनाएं।