Thursday, November 21st 2024

कवि कुंवर विक्रमादित्य सिंह की एक कविता “हम हिन्द की सरहद के वो जंगजू सिपाही हैं” 

कवि कुंवर विक्रमादित्य सिंह की एक कविता “हम हिन्द की सरहद के वो जंगजू सिपाही हैं” 

हम हिन्द की सरहद के वो जंगजू सिपाही हैं 

हम हिन्द की सरहद के वो जंगजू सिपाही हैं 

तैयार वतन को जब हमारी याद आयी है 

बस्ते हैं हम शहरों में गाँवों में मुकामों में 

हम हैं कईं हर रोज़ लगे कितने ही कामों में 

ऊपर से दिखते आम हम कितने ही चेहरों में 

भीतर वतन का इश्क़ उफ़न बनकर के लहरों में 

हम हिन्द की सरहद के वो जंगजू सिपाही हैं

तैयार वतन को जब हमारी याद आयी है

मौका मिले जब भी वतन हमको बुलाता है 

बनके हुजूम हमारा एक तूफ़ान आता है 

सब छोड़कर हाज़िर वतन के हम बुलावे पे 

छाती हो चौड़ी शान सजे सबके ही माथे पे 

हम हिन्द की सरहद के वो जंगजू सिपाही हैं 

तैयार वतन को जब हमारी याद आयी है 

सीने को अब लोहा बनाने में लग जाते हैं 

हर बूँद पसीना बहते लहू सा हम बहाते हैं 

संगीन को बन्दूक पर कुछ यूँ सजाते हैं 

चाहे पहाड़ी हो आगे हम बढ़ते जाते हैं 

हम हिन्द की सरहद के वो जंगजू सिपाही हैं 

तैयार वतन को जब हमारी याद आयी है 

जो वक़्त आज़माइश का आखिर पहुँचता है 

हम शुक्र मनाते हैं सबमें जज़्बा उमड़ता है 

मैदान में हम ललकार भरे कुछ यूँ छा जाते हैं 

दुश्मन के हर मंसूबे को हम धूल चटाते हैं 

हम हिन्द की सरहद के वो जंगजू सिपाही हैं 

तैयार वतन को जब हमारी याद आयी है 

जब तक फतह न हो मुकम्मल जान लड़ाते हैं 

कोई एक गिरे तो दस वहाँ हाज़िर हो जाते हैं 

मैदान ए जंग को खून से हम स्याह करते हैं 

हो सामने कुछ भी नहीं परवाह करते हैं 

हम हिन्द की सरहद के वो जंगजू सिपाही हैं 

तैयार वतन को जब हमारी याद आयी है

खातिर वतन के दांव पर सब कुछ ही रखते हैं 

हम हिन्द के परचम को यूँ ऊँचा ही रखते हैं 

मकसद को कर पूरा हम अपने लौट जाते हैं 

लम्हा बुलाता जब जुनूं बनकर के छाते हैं 

हम हिन्द की सरहद के वो जंगजू सिपाही हैं 

तैयार वतन को जब हमारी याद आयी है

– कुंवर विक्रमादित्य सिंह

( वतन के हर दिलेर और सच्चे सपूत के जज़्बे और हौसले को मेरी कलम का छोटा सा सलाम)