रंगो के पावन पर्व होली पर विशेष कविता “मैं कौन सा रँग लगाऊँ ?….”

रंगो के पावन पर्व होली पर विशेष कविता “मैं कौन सा रँग लगाऊँ ?….”

मैं कौन सा रँग लगाऊँ?
ओ प्रिये
मैं कौनसा रँग लगाऊँ?
होली तो आनी जानी है
मेरी तेरी एक कहानी है
इस सतरँगी दुनिया में –
किस रँग से तुझे सजाऊँ?

धर्मों के भी अपने अलग रँग हैं
हरा है तो किसी का भगवा रँग है
बड़ा मुश्किल है यहाँ रँग चुनना –
क्योंकि मेरा तो मुहब्बत का रँग है
दूसरा रँग फिर कैसे लगाऊँ?

ये चुनावी माहौल का असर है
टोपी का रँग भी है जुदा जुदा
लाल, नीला, पीला, हरा, सफेद
ग़ुलाबी, सब कितने बेअसर हैं
जिसमें हों सभी प्यार के रँग-
वो कौनसी टोपी तुम्हें पहनाऊँ?

आओ,  रँग बदलना छोड़ें
नफ़रत, ईर्ष्या को पीछे छोड़ें
हिंसा-राग द्वेष से मुँह मोडें
सतरँगी समरसता को जोड़ें
प्यार मुहब्बत के गीत गाऊँ!
खुशियों की महफ़िल सजाऊँ!

मैं कौन सा रँग लगाऊँ??

                     @नरेन्द्र सिंह

लेखक/कवि : नरेन्द्र सिंह चौधरी, भारतीय वन सेवा के सेवानिवृत्त अधिकारी हैं. इनके द्वारा वन एवं वन्यजीव के क्षेत्र में सराहनीय कार्य किये हैं.