Friday, December 27th 2024

एसजीआरआर फीस प्रकरण: सुप्रीम कोर्ट ने एसजीआरआर मेडिकल काॅलेज के पक्ष में सुनाया निर्णय

एसजीआरआर फीस प्रकरण: सुप्रीम कोर्ट ने एसजीआरआर मेडिकल काॅलेज के पक्ष में सुनाया निर्णय

एसजीआरआर फीस प्रकरण: सुप्रीम कोर्ट ने एसजीआरआर मेडिकल काॅलेज के पक्ष में सुनाया निर्णय पहाड़ समाचार editor

  • एसजीआरआर विश्वविद्यालय/ राज्य की फीस कमेटी/अपीलीय प्राधिकरण के मामले पर हाई कोर्ट नैनीताल ने एसजीआरआर के पक्ष में दे चुका है फैसला
  • सुप्रीम कोर्ट के निर्णय के बाद एमबीबीएस छात्रों को बकाया फीस की दो किश्तें जमा करवाना अनिवार्य, उसके बाद ही शुरू हो पाएगी इंटर्नशिप
  • उच्च न्यायालय नैनीताल को तीन माह के अन्दर इस मामले का निस्तारण करने के आदेश

देहरादून। श्री गुरु राम राय इंस्टीट्यूट ऑफ मेडिकल एण्ड हैल्थ साइंसेज के एमबीबीएस फीस निर्धारण सम्बन्धित मामले पर सुप्रीम कोर्ट ने एसजीआरआर मेडिकल काॅलेज के पक्ष में फैसला सुनाया है। इससे पूर्व उच्च न्यायालय, नैनीताल ने एसजीआरआर विश्वविद्यालय/ राज्य की फीस कमेटी/अपीलीय प्राधिकरण के मामले पर एसजीआरआर मेडिकल काॅलेज के पक्ष में फैसला सुनाया था। सुप्रीम कोर्ट के आदेशुनसार एमबीबीएस छात्र-छात्राओं को निर्धारित एमबीबीएस की बकाया फीस की पहली दो किश्तें अभी जमा करनी होंगी, उसके बाद ही वे इंटरर्नशिप शुरू कर सकते हैं। सुप्रीम कोर्ट ने हाई कोर्ट नैनीताल को तीन माह के अन्दर इस मामले का निस्तारण करने के निर्देश भी दिए।
शुक्रवार को सुप्रीम कोर्ट ने इस मामले पर सुनवाई करते हुए एसजीआरआर मेडिकल काॅलेज के पक्ष में फैसला सुनाया। सर्वोच्च न्यायालय ने सख्त फैसला सुनाते हुए मेडिकल छात्र-छात्राओं को बकाया फीस की पहली दो किश्तों को जमा करने के आदेश दिए इसके बाद ही छात्र-छात्राएं इंटर्नशिप शुरू कर सकते हैं।

श्री गुरु राम राय इंस्टीट्यूट ऑफ मेडिकल एण्ड हैल्थ साइंसेज़ की ओर से सुप्रीम कोर्ट में वरिष्ठ अधिवक्ता सुप्रीम कोर्ट सिद्वार्थ दवे, मनन वर्मा, हर्ष गटानी, सागर गौड, सुखप्रीत मन, नितिन सलूजा, साहिल मंगोलिया ने मजबूत पैरवी की।

सोशल मीडिया व मीडिया के ऐसे वर्ग के लिए इस मामले का निर्णय एक सीख है। सीख इसलिए क्योंकि वे कई बार केवल सनसनी फैलाने के उद्देश्य से समाज में भ्रम की स्थिति पैदा कर देते हैं। किसी भी मामले का संवैधानिक व कानूनी पक्ष जाने बिना किसी संस्थान की छवि को नुकसान पहुंचाना या उसके बारे में भ्रामक जानकारी फैलाना समाज हित में नहीं है। मुटठी भर गैरजिम्मेदार मीडियाकर्मयों के कृत्य से समूचे मीडिया की विश्वसनीयता पर प्रश्नचिन्ह लग जाता है। सोशल मीडिया के जिन प्लेटफार्म पर अभी भी इस मामले की भ्रामक जानकारी अपलोड है, वह तत्काल हटाई जानी चाहिए। एसजीआरआर मेडिकल काॅलेज ने सत्य की यह लड़ाई हाईकोर्ट और सुप्रीम कोर्ट में जीती। यह तभी सम्भव हुआ जब इस मामला से जुड़े सभी तथ्य व जानकारी संवैधानिक रूप से सही थी।
भूपेन्द्र रतूड़ी
मुख्य जनसम्पर्क अधिकारी
एसजीआरआर मेडिकल काॅलेज

यह है प्रकरण

एमबीबीएस वर्ष 2018 बैच के छात्र-छात्राओं की काउंसलिंग के दौरान एमबीबीएस की फीस निर्धारित नहीं थी। इस कारण राज्य सरकार के प्रतिनिधि के रूप में तत्कालीन अपर मुख्य सचिव उत्तराखण्ड ओम प्रकाश ने इस आश्य का एक पत्र जारी किया था और उल्लेख किया था कि छात्र-छात्राओं द्वारा जो फीस उस समय दी जा रही है वह एक प्रोविजलन व्यवस्था है। इस बात की जानकारी होते हुए मेडिकल छात्र-छात्राओं ने 100 रुपये के स्टॉम्प पेपर पर यह घोषणा की कि माननीय उच्च न्यायालय के दिशा निर्देश पर एसजीआरआर विश्वविद्यालय/ राज्य की फीस कमेटी/अपीलीय प्राधिकरण द्वारा जो भी फीस निर्धारित की जाएगी, छात्र-छात्राएं उस फीस का भुगतान करेंगे, लेकिन प्रवेश एवम् शुल्क नियामक समिति के द्वारा फीस निर्धारित किए जाने के बाद छात्र-छात्राएं व उनके अभिभावक स्वयं द्वारा भरे गए एफिडेविट से ही मुकर गए। कुछ छात्र-छात्राएं व उनके अभिभावक एसजीआरआर मेडिकल काॅलेज के गेट पर धरना प्रदर्शन करने बैठ गए थे।
मेडिकल छात्र-छात्राओं को इसलिए झेलनी पड़ी फजीहत।

1. एसजीआरआर विश्वविद्यालय/ राज्य की फीस कमेटी/अपीलीय प्राधिकरण के फीस निर्धारण के फैसले को न मानना
2. छात्र-छात्राओं व उनके अभिभावकों द्वारा एडमिशन के समय छात्र-छात्राओं व उनके द्वारा दिए गए एफिडेविटों पर मुकर जाना
3. संवैधानिक संस्थाओं के निर्णयों की व्यापक व्याख्या के बावजूद छात्र-छात्राओं द्वारा फीस जमा न करना।
4. असामाजिक तत्वों के बहकावे में आकार मेडिकल काॅलेज के गेट पर धरना।
5. माननीय उच्च न्यायालय में पूरे मामले की बहस व निर्णय के बाद भी फीस जमा न करना।

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