Wednesday, December 25th 2024

प्रसिद्ध शायर अफजल मंगलोरी ने 22 जनवरी को सद्भावना दिवस के रूप में मनाने का किया आह्वान

प्रसिद्ध शायर अफजल मंगलोरी ने 22 जनवरी को सद्भावना दिवस के रूप में मनाने का किया आह्वान

रुड़की : ऑल इंडिया सूफी संत परिषद के राष्ट्रीय महासचिव व अंतरराष्ट्रीय शायर अफ़ज़ल मंगलोरी ने 22 जनवरी को सदभावना दिवस के रूप में मनाने का आह्वान किया। उन्होंने श्रीराम मंदिर प्राण प्रतिष्ठा के विषय में बोलते हुए कहा कि मुस्लिम समाज को हिन्दू भाइयों को बधाई देनी चाहिए और उनकी खुशी में शामिल होना चाहिए, क्योंकि जब हमारे हिन्दू भाई ईद, रमज़ान, मोहर्रम, दरगाहों के उर्स तथा हज यात्रा के दौरान शामिल ही नही होते बल्कि उनमें सहयोग भी करते हैं, तो इस लिहाज से ऐसे समय में आपसी सद्भावना के लिए ये ज़रूरी है।

उत्तराखंड उर्दू अकादमी के पूर्व उपाध्यक्ष अफ़ज़ल मंगलोरी ने कहा कि मुस्लिम समाज को इसलिए भी खुश होना चाहिये कि सुप्रीम कोर्ट के जिस फ़ैसले को लेकर हमारे धर्म गुरु 2009 में मस्जिदों, मदरसों और टीवी चैनलों से ऐलान कर रहे थे कि मुसलमान कोर्ट का फैसला हर सूरत में मानेंगे, तो उसी कोर्ट के आदेश पर हिन्दू भाई अपना मंदिर बना रहे है और इतनी बड़ी सदियों से चली आ रही समस्या का समाधान बिना खून खराबे और बिना साम्प्रदायिक झगड़े के हो रहा है। मंगलोरी ने कहा कि मुसलमान केवल भारत ही में नही बल्कि इस्लामिक देशों में भी हिंदू भाइयो की भावना का सम्मान कर रहे हैं जैसे अबुधाबी व ओमान में मंदिर बनाकर हिन्दू भाइयों को तोहफ़े दिए हैं। उन्होंने कहा कि सदियों से हमारे सूफ़ी बुजुर्गों ने सभी धर्मो के लोगो का सम्मान किया और आज भी सभी दरगाहों पर हर धर्म के लोग आते हैं। उन्होंने कहा कि किसी धर्म के लोगो की ख़ुशी में शामिल होकर उनको मुबारकबाद देना मेरी नज़र में पैग़ाम ए इत्तेहाद की अलामत है। इससे हमारा मुल्क मज़बूत होगा और अपने मुल्क को मजबूत करना हमारा फ़र्ज़ भी है। उन्होंने कहा कि श्रीराम का सभी आदर करते है। हमारे पूर्वजों ने भी उनका हमेशा के साथ नाम लिया, जिसकी अनेक मिसालें मौजूद हैं।

मंगलोरी ने कहा कि मुसलमान भाई शायर अल्लामा डॉ मो इक़बाल को शायर ए इस्लाम, हकीम उल उम्मत मानते हैं, उन्हीं डॉ. इक़बाल ने आज से 100 वर्ष पूर्व अपने संकलन में लिखा था “है राम के वजूद पर हिंदोस्तां को नाज़, अहले नज़र समझते हैं उनको इमाम ए हिन्द” मंगलोरी ने कहा कि मज़हब की दृष्टि से अगर “इमाम” का मतलब देखा जाए तो कुछ और ही निकलता है, मगर अल्लामा इक़बाल ने उनको एक सद्भावना का प्रतीक मान कर ही ऐसा लिखा। ऐसी और भी सैकड़ो मिसाले इतिहास में मौजूद है। मुग़ल काल में अधिकांश बादशाह लालकिला में बाकायदा होली, दीवाली, बसन्त, रामलीला, जन्माष्टमी जैसे त्योहारों पर आयोजन करते थे, जो उस समय सद्भावना के तौर किये जाते थे। उन्होंने कहा कि हिन्दू मुस्लिम की ये सद्भावना आज से नही सदियों से ही है आज भी मुसलमान जब कोई त्यौहार होता या कोई खुशी का मौका होता है, तो हिन्दू भाइयों की दुकानों से वो ही मिठाई लाते हैं जिस पर वे पूजा और भोग लगाकर दुकान में रखते हैं। इसी तरह की मिसाल हिन्दू भाई भी पेश करते है।