Friday, November 22nd 2024

दुखःद : मशहूर शायर मुनव्वर राणा का निधन….

दुखःद : मशहूर शायर मुनव्वर राणा का निधन….

लखनऊ : मशहूर शायर मुनव्वर राणा का रविवार देर रात को दिल का दौरा पड़ने से निधन हो गया। उन्होंने 71 वर्ष की उम्र में लखनऊ के पीजीआई में अंतिम सांस ली। मुनव्वर राणा लंबे समय से बीमार चल रहे थे, जिसके कारण उन्हें पीजीआई के आईसीयू में भर्ती कराया गया था। वह लंबे समय से गले के कैंसर से पीड़ित थे। मुनव्वर राणा की बेटी सुमैया राणा ने समाचार एजेंसी पीटीआई को बताया कि उनके पिता का लखनऊ के पीजीआई अस्पताल में निधन हो गया और आज उनको सुपुर्द-ए-खाक (अंतिम संस्कार) किया जाएगा। उनके परिवार में उनकी पत्नी, चार बेटियां और एक बेटा है। मुनव्वर का जन्म 26 नवंबर 1952 को उत्तर प्रदेश के रायबरेली जिले में हुआ था। 2014 में उन्हें उनकी लिखी कविता शाहदाबा के लिए साहित्य अकादमी पुरस्कार दिया गया था। हालांकि, बाद में उन्होंने इसे सरकार को वापस लौटा दिया था।

उनके खास शयर

-सिरफिरे लोग हमें दुश्मन-ए-जां कहते हैं,

हम तो इस मुल्क की मिट्टी को भी मां कहते हैं.

-आप को चेहरे से भी बीमार होना चाहिए,

इश्क है तो इश्क का इजहार होना चाहिए.

-एक किस्से की तरह वो तो मुझे भूल गया,

इक कहानी की तरह वो है मगर याद मुझे.

-किसी को घर मिला हिस्से में या कोई दुकां आई,

मैं घर में सबसे छोटा था मेरे हिस्से में मां आई.

-वो बिछड़ कर भी कहां मुझ से जुदा होता है,

रेत पर ओस से इक नाम लिखा होता है.

-नये कमरों में अब चीजें पुरानी कौन रखता है,

परिंदों के लिए शहरों में पानी कौन रखता है.

-ये हिज्र का रस्ता है ढलानें नहीं होतीं,

सहरा में चरागों की दुकानें नहीं होतीं.

-तुझसे बिछड़ा तो पसंद आ गयी बे-तरतीबी,

इससे पहले मेरा कमरा भी गजल जैसा था.

-तुझे अकेले पढूं कोई हम-सबक न रहे,

मैं चाहता हूं कि तुझ पर किसी का हक न रहे.

-मैं भुलाना भी नहीं चाहता इस को लेकिन,

मुस्तकिल जख़्म का रहना भी बुरा होता है.