Friday, December 20th 2024

देवभूमि उत्तराखंड में संस्कृत की पाठशाला के नाम से मशहूर तिमली ग्राम की सुजाता ने बनाया इतिहास, प्रधानमंत्री मोदी की किताब का गढ़वाली में किया अनुवाद

देवभूमि उत्तराखंड में संस्कृत की पाठशाला के नाम से मशहूर तिमली ग्राम की सुजाता ने बनाया इतिहास, प्रधानमंत्री मोदी की किताब का गढ़वाली में किया अनुवाद

देहरादून। भारत पाकिस्तान विभाजन के समय लाहौर में संघ के समर्पित कार्यकर्ता के रूप में स्वर्गीय शिव प्रसाद डबराल ने पाकिस्तान में दंगाइयों से आमजनों को बचाने के लिए अपनी जान की बाजी तक लगा दी थी, जिसकी निशानी उनके शरीर में हथियारों से किए गए घावों के निशान थे।  विभाजन के समय संस्कृत के प्रकांड विद्वान स्वर्गीय ललिता प्रसाद डबराल, जिन्हें हिटलर ने म्यूनिख यूनिवर्सिटी में संस्कृत विभाग के विभागाध्यक्ष के तौर पर आमंत्रण दिया था, उस आमंत्रण को ठुकरा कर लाहौर में संस्कृत के शिक्षक के तौर पर कार्यरत थे। गढ़वाल के प्रसिद्ध पट्टी डबरालस्यूं के तिमली गाँव में संस्कृत की पाठशाला खोल 1933 में शास्त्री तक पठन पाठन के लिए अनुमति प्राप्त कर ली थी।

सन 1933 में तिमली संस्कृत पाठशाला को मिली मान्यता का प्रमाणपत्र

स्वर्गीय शिव प्रसाद डबराल ने बाद में बीएसएफ में सब इंस्पेक्टर के रूप में अपनी बेहतरीन सेवायें  दीं थी। उनकी सुपुत्री सुजाता डबराल नौडियाल ने भारत के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की मूल गुजराती में लिखी किताब और हिंदी में डॉ. अंजना संघीर अनुदित कविताओं के संग्रह ” आँखा आ धन्य छे” का गढ़वाली में अनुवाद “आँखा यो धन छन” नाम से किया। आँखा यो धन छन का विमोचन देहरादून भाजपा कार्यालय में भाजपा के राष्ट्रीय महामंत्री दुष्यंत गौतम के द्वारा किया गया।

सुजाता डबराल नौडियाल जब गुजरात और मुंबई मेंअपने पति अरविंद नौडियाल जो ओएनजीसी में एक वरिष्ठ अधिकारी पद पर हैं के साथ रही, उस दौरान उनका परिचय उन लोगों से हुआ जो मोदी जी की कविताओं का हिंदी व अन्य भाषाओं में अनुवाद कर रहे थे, प्रधानमंत्री मोदी की इस किताब का अब तक कुमाऊँनीं,नेपाली मराठी,पंजाबी सहित भारत की लगभग २५ भाषाओं में इस पुस्तक का अनुवाद हो चुका है। तब सुजाता डबराल नौडियाल के मन में आया कि क्यों ना वह अपनी बोली भाषा गढ़वाली में इसका अनुवाद करे।डॉ अंजना संघीर द्वारा दिये गये दिशा निर्देशों के साथ इस पुस्तक के अनुवाद की यात्रा आरंभ हुई।  सुजाता डबराल का मानना है कि वह कोई गढ़वाली भाषा की पंडित नहीं है, लेकिन जो आसानी से आम जन को समझ में आ जाये उसी सीधी-सादी गढ़वाली में उन्होंने ये अनुवाद किया है। 

गढ़वाली भाषा में प्रधानमंत्री मोदी की किताब का अनुवाद होने से पूरे डबराल परिवार में खुशी की लहर है। उनकी दीदी संजीता डबराल का कहना है, कि प्रधानमंत्री की किताब का गढ़वाली भाषा में अनुवाद होना, गढ़वाली कुमाऊनी भाषाओं को संविधान की आठवीं अनुसूची में शामिल करने की ओर एक मील का पत्थर है। मीडिया जगत की प्रसिद्ध हस्ती प्रभात डबराल ने कहा कि हमारे पूर्वजों के प्रताप हमें लेखन एवम पठन पाठन में विशिष्टता प्राप्त है, उसका सही इस्तेमाल सुजाता डबराल ने किया है। सुजाता डबराल के मामा शिव दयाल बौंठियाल ने बताया कि सुजाता डबराल बहुमुखी प्रतिभा की धनी है और लेखन के साथ साथ योग के क्षेत्र में भी सुजाता ने उल्लेखनीय कार्य किया है और अभी भी लोगों को योग का महत्व बताने और योग सिखाने का कार्य लगातार करती आ रही है। सुजाता डबराल की माता नंदा देवी ने कहा कि वैसे तो डबरालों को पूर्वजों का आशीर्वाद प्राप्त है और यह किवदंती भी गढ़वाल में मशहूर है कि “तिमली क गोर बछडू तै भी संस्कृत औंदी च।” पर सुजाता डबराल को बहुमुखी प्रतिभा जन्मजात ही प्राप्त है। सुजाता डबराल की छोटी बुआ स्वर्गित कल्याणी डबराल भी गढ़वाली और संस्कृत की नामी लेखिका थीं,सत्तर और अस्सी के दशक में रेडियो नजीबाबाद से उनके लेख प्रसारित होते थे और बड़ी बुआ माधुरी डबराल राजमाता इंटर कॉलेज टिहरी से प्रधानाध्यपक के पद से सेवानिवृत हुईं थीं।सुजाता डबराल के ताऊजी स्वर्गीय सत्य प्रसाद भरत मंदिर इंटर कॉलेज ऋषिकेश के प्राचार्य थे व चाचाजी स्वर्गीय चिंतामणि डबराल एम्स नई दिल्ली में निदेशक के पद पर सेवारत थे।