जानें लुप्तप्राय प्रजाति दिवस पर यह महत्वपूर्ण जानकारी एवं तथ्य ………..
- कृपया हमें लुप्त होने से बचा लो!
देहरादून : प्रतिवर्ष मई के तीसरे शुक्रवार को लुप्तप्राय प्रजाति दिवस मनाया जाता है। इस दिन संकटग्रस्त और लुप्तप्राय प्रजातियों की रक्षा के लिए कार्रवाई करतें हैं। यह वैश्विक दिवस डेविड रॉबिन्सन और लुप्तप्राय प्रजाति गठबंधन द्वारा 2006 में बनाया और स्थापित किया गया था। दुनिया से लगातार कई जीवों की प्रजातियां लुप्तप्राय रही है। शायद इतिहास में विलुप्त होने के बारे में सबसे पहले और सबसे अधिक ज्ञात विलुप्तियों में से एक डायनासोर की विलुप्ति है। लुप्तप्राय प्रजाति वह है जो आज भी दुनिया में है, लेकिन अगर सही कदम नहीं उठाए गए तो यह अधिक समय तक अस्तित्व में नहीं रहेगी। अंतरर्राष्ट्रीय संघ प्रकृति के संरक्षण के लिए ‘लुप्तप्राय’ की स्थिति तय करता है। IUCN के अनुसार दुनिया भर में कम से कम 40 % जानवर, कीड़े और पौधे विलुप्त होने के संकट में हैं।
मूल रूप से राष्ट्रीय लुप्तप्राय प्रजाति दिवस लोगों को उन पर्यावरणीय मुद्दों के बारे में अधिक जानने में मदद करने के लिए डिजाइन किया गया है, जिनका ग्रह आज सामना कर रहा है। हमारे सम्मुख पर्यावरणीय समस्याओं को हल करने और प्राकृतिक दुनिया की रक्षा के लिए रचनात्मक, win-win तरीके खोजने के लिए एक साथ विचार मंथन करने हेतु प्रेरित करना है। लुप्तप्राय प्रजाति: एक लुप्तप्राय प्रजाति वह जीव है, जिसे विलुप्त होने का खतरा सामने है क्योंकि उनकी संख्या इतनी न्यूनतम हो गयी है कि उनके अस्तित्व का संकट आ गया है।
- प्रजातियां के लुप्तप्राय होने के कारण: प्राकृतवास और आनुवंशिक विविधता की क्षति।
- प्राकृतवास का खोनाः निवास स्थान का नुकसान स्वाभाविक रूप से भी हो सकता है। मानव गतिविधि भी निवास स्थान के नुकसान में योगदान करतीं है। आवास, उद्योग और कृषि के विकास से देशी जीवों का आवास कम हो जाता है। यह कई अलग-अलग तरीकों से हो सकता है।
- आनुवंशिक भिन्नता की क्षति: आनुवंशिक भिन्नता एक प्रजाति के भीतर पाई जाने वाली विविधता है। यही कारण है कि मनुष्य के बाल सुनहरे, लाल, भूरे या काले हो सकते हैं। आनुवंशिक भिन्नता प्रजातियों को पर्यावरण में होने वाले परिवर्तनों के अनुकूल ढलने की अनुमति देती है। आमतौर पर, किसी प्रजाति की जनसंख्या जितनी अधिक होगी, उसकी आनुवंशिक विविधता उतनी ही अधिक होगी।
विश्व के 10 सबसे लुप्तप्राय प्राणी
- जावन गैंडे
- अफ्रीकी वन हाथी
- अमूर तेंदुआ
- सुंडा द्वीप बाघ
- माउंटेन गोरिल्ला
- अपानुली ओरांगुटान
- ओरंगुटान सुमात्राण
- यांग्त्जी फिनलेस
- पोरपोइज हॉक्सबिल कछुए
- काले गैंडे
भारत में लुप्तप्राय हो रही 10 प्रमुख प्रजातियां
- हिम तेंदुआ
- संगई मणिपुरी हिरण
- एशियाई शेर
- बंगाल टाइगर
- नीलगिरि थार
- कश्मीरी रेड स्टैग
- एक सींग वाला गैंडा
- शेर-पूंछ वाला मकाक
- देदीप्यमान वृक्ष मेंढक
- गौड़वण पक्षी
आपने देखा होगा कि आपके क्षेत्र, राज्य, और देश में बहुत सी वन्य प्रजातियां विलुप्त होने के कगार पर हैं, और कई प्रजातियां पूर्व में हीं विलुप्त हो चुकीं हैं। एक बार जो प्रजाति हमारे ग्रह से विलुप्त हो जाती है, उसे वापस नहीं लाया जा सकता है। अतः यह श्रेयष्कर है कि हम ऐसी संकटापन्न प्रजातियों के प्राकृतवास समाप्त न होने दें। यदि विकास आदि के विभिन्न प्रोजेक्ट के कारण ऐसा हो रहा है तो कृपया उनका पुरजोर विरोध करें, और उनके संरक्षण में अपनी सक्रियता सहभागिता सुनिश्चित करें।_
- शुभ लुप्तप्राय: प्रजाति दिवस!!
लेखक : नरेन्द्र सिंह चौधरी, भारतीय वन सेवा के सेवानिवृत्त अधिकारी हैं. इनके द्वारा वन एवं वन्यजीव के क्षेत्र में सराहनीय कार्य किये हैं.