Wednesday, December 25th 2024

जानें तनु मैम सोशियोलॉजी वाली के बारें में, यूनिक हैं उनके पढ़ाने का स्टाइल, छात्र- छात्राएं रहते हैं क्लास के लिए उत्साहित

जानें तनु मैम सोशियोलॉजी वाली के बारें में, यूनिक हैं उनके पढ़ाने का स्टाइल, छात्र- छात्राएं रहते हैं क्लास के लिए उत्साहित

देहरादून । एक शिक्षिका का जुनून शिक्षा से कहीं अधिक होता है; यह समाज के भविष्य को आकार देने का एक गहरा और समर्पित प्रयास है। एक सच्ची शिक्षिका सिर्फ पाठ्यक्रम पढ़ाने तक सीमित नहीं रहती, बल्कि अपने छात्रों के चरित्र, नैतिकता और आत्मविश्वास को भी संवारती है। जी हां हम बात कर रहे है राजकीय स्नातकोत्तर महाविद्यालय नई टिहरी में कार्यरत तनु मैम सोशियोलॉजी वाली की। शिक्षा के प्रति अपने जुनून के कारण आपने अपने जिला सूचना अधिकारी के पद का भी त्याग कर दिया, और निरंतर छात्र छात्राओं के मार्गदर्शन में सकारात्मक रूप से कार्य कर रही हैं और जिसके असंख्य सकारात्मक परिणाम भी समाज के सामने है। जहां एक ओर समाज में सरकारी विद्यालयों और महाविद्यालयो की छवि इतनी अच्छी नहीं है जितनी प्राइवेट संस्थानों की है वही आज भी सरकारी विद्यालयों और महाविद्यालय में ऐसे शिक्षक और यह कहना अतिशयोक्ति नहीं होगा जुनूनी शिक्षक कार्यरत है जो अपने पूरे मनोयोग से शिक्षण कार्य के प्रति समर्पित है।

इसका सहज उदाहरण ऐसे लगाया जा सकता है की छात्र अपनी रुचि देखकर नहीं शिक्षक देखकर विषयों का चयन कर रहे हैं, जिन विषय का शिक्षक उन्हें करियर के प्रति और साथ ही प्रतियोगी परीक्षाओं के प्रति उनका मार्गदर्शन करता है वहां छात्र संख्या निरंतर बढ़ती जाती है। वहीं दूसरी ओर ऐसे विषय भी है जहां शिक्षकों की छात्र-छात्राओं के प्रति उदासीनता के कारण छात्र संख्या मात्र औपचारिकता रह गई है।

एक शिक्षिका का जुनून उसे यह प्रेरणा देता है कि वह हर छात्र की व्यक्तिगत आवश्यकताओं को समझे और उनके अनुरूप मार्गदर्शन करे। उसे अपने विद्यार्थियों की सफलता में अपनी सफलता दिखती है और उनकी असफलताओं में सुधार के अवसर। शिक्षिका का यह समर्पण उसे न केवल एक मार्गदर्शक बनाता है, बल्कि एक प्रेरणास्त्रोत भी बनाता है। डॉ तनु मित्तल के आज असंख्य छात्र उन्हीं की तरह सरकारी सेवा में कार्यरत है, समाजशास्त्र विषय के प्रति उनके समर्पण का एहसास उनके द्वारा चलाए जा रहे यूट्यूब चैनल तनु मैम सोशियोलॉजी वाली से लगाया जा सकता है। जिसमें उनसे उत्तराखंड सहित उत्तर प्रदेश, मध्य प्रदेश, बिहार, झारखंड, छत्तीसगढ़, दिल्ली हरियाणा से असम के छात्र नि:शुल्क शिक्षा प्राप्त कर रहे हैं और प्रतियोगी परीक्षाओं के तैयारी कर रहे हैं। उनके छात्र-छात्राएं आज उन्हीं की तरह प्रोफेसर है, प्राध्यापक है, पीसीएस अधिकारी है, पुलिस में कार्यरत है और असंख्य छात्र छात्राएं यूजीसी नेट और जेआरएफ की परीक्षा उत्तीर्ण कर चुके हैं।

डॉ. तनु मित्तल ने बताया की उनके छात्र-छात्राएं उन्हें मां बोलते हैं। वह हमेशा नई-नई शिक्षण विधियों को अपनाने, तकनीकी साधनों का उपयोग करने और अपने ज्ञान को अद्यतन रखने के लिए उत्साहित रहती है। उसकी सोच है कि शिक्षा सिर्फ एक पेशा नहीं, बल्कि एक सेवा है। यही उसकी प्रेरणा और जुनून को जीवित रखता है और उसे अपने छात्रों के जीवन में सकारात्मक बदलाव लाने के लिए प्रेरित करता है। उनकी दृष्टि में शिक्षा केवल पाठ्यक्रम पूरा करना नहीं है। वह मानती हैं कि समाजशास्त्र एक ऐसा विषय है, जो छात्रों को समाज की सच्चाई से परिचित कराकर उन्हें सजग और संवेदनशील बनाता है। वह चाहती हैं कि उनके छात्र न केवल सिद्धांतों को रटें, बल्कि उनकी गहरी समझ विकसित करें और इसे वास्तविक जीवन में देख और समझ सकें।

इस तरह की शिक्षिका सामाजिक दायित्व और नैतिकता का भी पाठ पढ़ाती हैं। वह छात्रों को यह समझाने का प्रयास करती हैं कि समाजशास्त्र का अध्ययन केवल परीक्षा उत्तीर्ण करने के लिए नहीं है, बल्कि इसके माध्यम से वे समाज में सुधार की दिशा में योगदान दे सकते हैं। उदाहरण के लिए, यदि उनके विद्यार्थी पत्रकार, सामाजिक कार्यकर्ता या सरकारी अधिकारी बनते हैं, तो वह चाहती हैं कि उनकी समाजशास्त्रीय समझ उनके काम में भी झलके और वे समाज में सकारात्मक बदलाव लाने में सक्षम हों। वह वीडियो, दस्तावेजी फिल्में, ऑनलाइन संसाधन, और अन्य डिजिटल उपकरणों का उपयोग करती हैं, ताकि छात्रों को विषय में और अधिक रुचि हो। वह छात्रों को अपने विचार प्रस्तुत करने के लिए प्रोत्साहित करती हैं, जैसे कि परियोजना कार्य, प्रस्तुति, और ब्लॉग लेखन, जिससे उनके भीतर आत्मविश्वास और जिम्मेदारी की भावना बढ़ती है।

वह अपनी कक्षा को एक ऐसा मंच बनाने का प्रयास करती हैं, जहाँ छात्रों को अपनी जिज्ञासाओं को व्यक्त करने और नए विचारों को विकसित करने की पूरी स्वतंत्रता हो। किसी भी छात्र की सीखने की क्षमता, विचारशीलता या सवाल पूछने के तरीकों को लेकर वे धैर्यवान रहती हैं और उन्हें बढ़ावा देती हैं। वह कमजोर छात्रों को अतिरिक्त समय देने के लिए तैयार रहती हैं और उनकी जरूरतों के अनुसार अपने शिक्षण में बदलाव करने में सक्षम होती हैं।

एक जुनूनी समाजशास्त्र शिक्षिका कक्षा के बाहर भी अपने छात्रों से जुड़े रहने का प्रयास करती हैं। वह न केवल उनकी शैक्षणिक चुनौतियों को समझती हैं बल्कि उनके व्यक्तिगत विकास में भी मार्गदर्शन करती हैं। वह अपने विद्यार्थियों के साथ एक भरोसेमंद संवाद बनाए रखती हैं, जिससे छात्र खुलकर अपने विचार, समस्याएँ और संदेह साझा कर सकते हैं। उनके लिए समाजशास्त्र का शिक्षण केवल एक पेशा नहीं बल्कि एक मिशन है, जिसके माध्यम से वह एक समझदार और समतामूलक समाज के निर्माण में योगदान देना चाहती है। वह समाज और शिक्षा दोनों में एक प्रेरणास्रोत के रूप में उभरी है।