चीनी क्षेत्र के पुनरुत्थान के जरिये ग्रामीण अर्थव्यवस्था को मिल रही रफ्तार और सशक्त हो रहे किसान – सचिव खाद्य एवं सार्वजनिक वितरण विभाग संजीव चोपड़ा
नई दिल्ली : भारत सरकार ने हाल ही में चीनी सत्र 2023-24 के लिए गन्ने के 315 रुपये प्रति क्विंटल के उचित और लाभकारी मूल्य (एफआरपी) की घोषणा की है, जिसमें भुगतान लागत के साथ-साथ पारिवारिक श्रम के मूल्यांकित मूल्य (ए2+एफएल लागत) पर 100 प्रतिशत से अधिक का मार्जिन शामिल किया गया है। यह फसलों के लिए सबसे ज्यादा मार्जिन में से एक है, जिससे किसानों के लिए ऊंचा रिटर्न सुनिश्चित किया जा सकेगा। इस फैसले से लगभग 5 करोड़ गन्ना किसानों और उनके आश्रित लाभान्वित होंगे। नई एफआरपी का उद्देश्य भारतीय चीनी उद्योग की प्रतिस्पर्धात्मकता सुनिश्चित करते हुए किसानों की आकांक्षाओं को पूरा करना है। एफआरपी वह बेंचमार्क कीमत है जिससे कम मूल्य पर कोई भी चीनी मिल गन्ना नहीं खरीद सकती। इसलिए, यह न्यूनतम समर्थन मूल्य की तरह है लेकिन यहां पर खरीद चीनी मिलों द्वारा की जाती है, सरकार द्वारा नहीं।
भारत में चीनी उद्योग का इतिहास उतार-चढ़ाव वाला रहा है और हाल के वर्षों में यह एक मजबूत क्षेत्र के रूप में उभरकर सामने आया है। 2020-21 से पहले 8 वर्षों में, भारत सरकार ने चीनी क्षेत्र को वित्तीय संकट से बाहर लाने के लिए 18,000 करोड़ रुपये से अधिक की वित्तीय सहायता दी, ताकि मिलों द्वारा किसानों का भुगतान तत्काल जारी किया जा सके। हाल के वर्षों में, केंद्र सरकार के लक्षित हस्तक्षेप, चीनी उद्योग की कुशलता और अनुकूल वैश्विक कारकों के कारण चीनी क्षेत्र में बड़ा बदलाव आया है। चीनी क्षेत्र की सेहत का अंदाजा इस बात से लगाया जा सकता है कि 2021-22 के बाद से, इथेनॉल परियोजनाओं के लिए ब्याज अनुदान योजना (जिसके तहत 30 जून, 2023 तक 494 करोड़ रुपये वितरित किए गए हैं) को छोड़कर चीनी मिलों को कोई बजटीय सहायता नहीं दी गई है।
आधुनिकीकरण और विविधीकरण के लिए क्षेत्र में पूंजीगत व्यय के बढ़े हुए स्तर से पिछले 6 वर्षों के दौरान इस क्षेत्र में 30,000 करोड़ रुपये से अधिक का अतिरिक्त निवेश हुआ है और ग्रामीण युवाओं के लिए 50,000 से अधिक प्रत्यक्ष और अप्रत्यक्ष रोजगार के अवसर पैदा हुए हैं। सूचीबद्ध कंपनियों के शेयर की कीमतों का रुझान न केवल इस क्षेत्र की वर्तमान स्थिति बल्कि इसकी भविष्य की संभावनाओं का भी एक विश्वसनीय संकेत है। ऐसा देखा गया है कि शीर्ष 10 सूचीबद्ध चीनी कंपनियों का बाजार पूंजीकरण (उनकी गन्ना पेराई क्षमता के आधार पर) पिछले 4 वर्षों में दोगुना से अधिक हो गया है।
चीनी क्षेत्र के कायापलट का श्रेय तीन प्रमुख कारकों को दिया जा सकता है। राष्ट्रीय जैव ईंधन नीति 2018 इस लिहाज से अहम पहल रही जिसने चीनी क्षेत्र के पुनरुद्धार में सबसे अधिक योगदान दिया है। इसके जरिये पेट्रोल के साथ इथेनॉल के मिश्रण को बढ़ावा दिया गया। हालांकि, पेट्रोल के साथ इथेनॉल सम्मिश्रण (ईबीपी) कार्यक्रम वर्ष 2003 से लागू किया जा रहा है, लेकिन राष्ट्रीय जैव ईंधन नीति की घोषणा को इस क्षेत्र में पुनरुत्थान की दिशा में महत्वपूर्ण घटना कहा जा सकता है। तब से, कई नीतिगत पहलों ने इथेनॉल संयंत्रों की स्थापना की प्रक्रियाओं को सरल बना दिया है और मोलासेस से उत्पादित इथेनॉल के लिए लाभकारी मूल्य की पेशकश की गई है। केंद्र सरकार ने इथेनॉल परियोजनाओं के लिए ब्याज अनुदान योजना भी शुरू की है, जिसके तहत देश में इथेनॉल उत्पादन क्षमता को बढ़ावा देने के लिए प्रोत्साहित करने के उद्देश्य से परियोजना के प्रस्तावकों को प्रति वर्ष 6 प्रतिशत ब्याज या 50 प्रतिशत ब्याज, जो भी कम हो, की 5 वर्षों के लिए प्रतिपूर्ति की जाती है। इसके तहत वर्ष 2018 से अभी तक 4,400 करोड़ लीटर अनुमानित क्षमता वाली 1,200 से ज्यादा परियोजनाओं को सैद्धांतिक मंजूरी दी जा चुकी है। महज दो वर्षों के दौरान, इथेनॉल मिश्रण का प्रतिशत दोगुना हो गया है और इथेनॉल आपूर्ति वर्ष (दिसंबर-नवंबर), 2021-22 के दौरान लगभग 434 करोड़ लीटर इथेनॉल मिश्रित किया गया था, जो 10 प्रतिशत के लक्ष्य को पार कर गया। ईबीपी कार्यक्रम अब 2025 तक 20 प्रतिशत इथेनॉल मिश्रण के लक्ष्य को प्राप्त करने की राह पर है, जिससे भारत दुनिया में तीसरा सबसे बड़ा इथेनॉल उत्पादक देश बन जाएगा। इथेनॉल सम्मिश्रण कार्यक्रम के परिणामस्वरूप पिछले 4 वर्षों के दौरान चीनी आधारित डिस्टिलरीज को 51,000 करोड़ रुपये से अधिक का अतिरिक्त राजस्व प्राप्त हुआ है। इस साल तेल विपणन कंपनियों को इथेनॉल की बिक्री से डिस्टिलरीज को 22,000 करोड़ रुपये से अधिक की कमाई होने की उम्मीद है।
चीनी का निर्यात दूसरा बड़ा घटनाक्रम है, जिससे चीनी मिलों को बुनियादी रूप से मजबूती मिली है। लगभग शून्य निर्यात से, भारत ने चीनी सत्र (नवंबर-अक्टूबर) 2021-22 में 110 लाख टन चीनी का निर्यात किया है और दुनिया में चीनी का दूसरा सबसे बड़ा निर्यातक बन गया। अन्य बातों के अलावा, निर्यात ने चीनी क्षेत्र को अपनी अतिरिक्त इन्वेंट्री का निपटान करने में सक्षम बनाया है जो अब तक चीनी मिलों के लिए पैसे के फंसने और गन्ना किसानों को भुगतान में देरी की वजह बनता था। भारतीय चीनी ने अब निर्यात बाजार में अपनी मजबूत पकड़ बना ली है और उसे ऊंची वैश्विक कीमतों का लाभ मिल रहा है, जो पिछले 3 वर्षों में लगभग दोगुनी हो गई हैं।
तीसरा कारक चीनी मिलों की उत्पाद श्रृंखला के विविधीकरण से संबंधित है। चीनी क्षेत्र आज देश में पर्यावरण पर न्यूनतम प्रभाव डालने वाली चक्रीय अर्थव्यवस्था का मार्ग दिखाने वाला बना हुआ है। उद्योग साथ में बिजली, पोटाश आधारित उर्वरकों के उत्पादन और कम्प्रेस्ड बायो गैस (सीबीजी) बनाने के लिए प्रेस मड के इस्तेमाल के साथ अतिरिक्त कमाई कर रहा है। चीनी उद्योग ने न केवल अपनी आवश्यकताओं को पूरा करने, बल्कि ग्रिड को अधिशेष बिजली प्रदान करने के लिए बिजली उत्पन्न करने में खोई का प्रभावी ढंग से उपयोग किया है। 9,500 मेगावाट की क्षमता के साथ, चीनी क्षेत्र अपने हरित ऊर्जा सह-उत्पादन बुनियादी ढांचे से लगभग 10,000 करोड़ रुपये का राजस्व अर्जित कर रहा है। ड्रिप सिंचाई के बढ़ते उपयोग और एकीकृत चीनी परिसरों में पानी के कुशल उपयोग के कारण चीनी मिलों द्वारा पानी का उपयोग कम हो रहा है। यह क्षेत्र कार्बन क्रेडिट अर्जित करने और मुद्रीकरण करने के उद्देश्य से इन सभी पहलों का उपयोग करने के लिए अच्छी तरह से तैयार है। इस प्रकार यह क्षेत्र नेट जीरो उत्सर्जन की दिशा में सीओपी 26 समझौतों के तहत भारत के लक्ष्यों को पूरा करने में सार्थक योगदान दे रहा है।
चीनी मिलों का मुनाफा बढ़ने से दो प्रमुख हितधारकों- किसानों और उपभोक्ताओं को भी फायदा हुआ है। चीनी मिलों के नकदी प्रवाह में सुधार से किसानों के गन्ने के बकाये का भुगतान तेजी से हुआ है। उपलब्ध आंकड़ों से पता चलता है कि 1 जुलाई, 2020 तक 73 प्रतिशत गन्ना बकाये का भुगतान किया जा चुका था, जबकि इस वर्ष इसी तारीख तक किसानों को 90.8 प्रतिशत बकाये का भुगतान किया जा चुका है।
चीनी की घरेलू कीमतों में स्थिरता के कारण उपभोक्ताओं को भी लाभ हुआ है। हालांकि, अंतरराष्ट्रीय स्तर पर चीनी की कीमतें अप्रैल, 2023 में 11 साल के उच्चतम स्तर पर पहुंच गईं, जबकि घरेलू स्तर पर खुदरा कीमतें 3 प्रतिशत से कम की मामूली मुद्रास्फीति के साथ स्थिर रही हैं। इसके विपरीत, पड़ोसी देशों में खुदरा कीमतें भारत की तुलना में दो से चार गुना तक अधिक हैं। राजस्व के अतिरिक्त स्रोतों और हरित ऊर्जा केंद्र के रूप में परिवर्तन के साथ, चीनी क्षेत्र कहीं अधिक मजबूत और आत्मनिर्भर हो गया है। यह अनुकूल नीति से संबंधित पारिस्थितिकी तंत्र से सहायता प्राप्त हितधारकों के ठोस प्रयासों के कारण संभव हुआ है।