अनुसंधान नेशनल रिसर्च फाउंडेशन आत्मनिर्भर भारत के माध्यम से वैश्विक नेतृत्व ग्रहण करने के लिए भविष्य का मार्ग – केन्द्रीय मंत्री डॉ. जितेन्द्र सिंह
@केन्द्रीय मंत्री डॉ. जितेन्द्र सिंह
नई दिल्ली : विश्व आज भारत की अद्भुत वैज्ञानिक क्षमता और कौशल से आश्चर्यचकित है, जो सुसुप्त थी और किसी को भी उसके बारे में सही रूप में पता नहीं था। वास्तव में, यह एक सक्षम वातावरण और एक समर्थक नेतृत्व मिलने की प्रतीक्षा में थी। यदि संक्षेप में कहें तो यह इतिहास का वह क्षण था जब नरेन्द्र मोदी भारत के प्रधानमंत्री बने और शेष तो इतिहास ही है। दुनिया को पहली बार डीएनए कोविड वैक्सीन उपहार में देने से लेकर चंद्रयान को घर लाने तक और चंद्रमा की सतह पर पानी की मौजूदगी का प्रमाण…यह मोदी के भारत की साक्ष्य आधारित अमिट छाप है, जिसने भारत को विश्वभर में व्यापक तौर पर एक सशक्त राष्ट्र के रूप में स्थापित किया है।
पिछले 9 वर्षों में भारत, विज्ञान, प्रौद्योगिकी और नवाचार (एसटीआई) से संबंधित राष्ट्रीय नीतियां अभूतपूर्व संख्या में लेकर आया है। कुछ प्रमुख नीतियों में भारतीय अंतरिक्ष नीति (2023), राष्ट्रीय भू-स्थानिक नीति (2022); राष्ट्रीय शिक्षा नीति (एनईपी) (2020); इलेक्ट्रॉनिक्स पर राष्ट्रीय नीति (एनपीई) (2019); स्कूली शिक्षा में सूचना और संचार प्रौद्योगिकी पर राष्ट्रीय नीति (2019); छात्रों और संकाय के लिए राष्ट्रीय नवाचार और स्टार्टअप नीति (2019); राष्ट्रीय स्वास्थ्य नीति (2017); बौद्धिक संपदा अधिकार नीति (2016), आदि शामिल हैं। इसी तरह, सरकार ने राष्ट्रीय क्वांटम मिशन (2023), वन हेल्थ मिशन (2023), नेशनल डीप ओशन मिशन (2021) आदि भी लॉन्च किए।
एसईआरबी डेटा के अनुसार, पिछले 10 वर्षों में औसतन, कुल अनुसंधान निधि का लगभग 65 प्रतिशत आईआईएससी, आईआईटी, आईआईएसईआर आदि जैसे राष्ट्रीय महत्व के संस्थानों को दिया जा रहा है और केवल 11 प्रतिशत धनराशि राज्यों के विश्वविद्यालयों को प्रदान की जा रही है, जहां अनुसंधानकर्ताओं की संख्या आईआईटी की तुलना में बहुत अधिक है। ऐसा इसलिए है क्योंकि अनुसंधान निधि की वर्तमान प्रणाली प्रतिस्पर्धी अनुदान द्वारा प्रेरित है। इसी तरह, अधिकांश राज्यों के विश्वविद्यालयों में अनुसंधान की आधारभूत संरचना राष्ट्रीय शैक्षणिक और अनुसंधान एवं विकास प्रयोगशालाओं की तुलना में बहुत कमजोर है। हमारे विश्वविद्यालयों में शिक्षा जगत और उद्योग जगत की साझेदारी और अंतर्राष्ट्रीय सहयोग अपर्याप्त रहा है।
वास्तव में परिवर्तनकारी अनुसंधान नेशनल रिसर्च फाउंडेशन की स्थापना करना प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी का भी विज़न था, जो न केवल वर्तमान अनुसंधान एवं विकास के इकोसिस्टम की कुछ बड़ी चुनौतियों का समाधान करेगा, बल्कि देश को दीर्घकालिक अनुसंधान एवं विकास को लेकर विजन प्रदान करेगा और भारत को अगले 5 वर्षों में वैश्विक स्तर पर अनुसंधान एवं विकास के एक अग्रणी देश के रूप में स्थापित करेगा।
अनुसंधान एनआरएफ (एएनआरएफ) गणितीय विज्ञान, इंजीनियरिंग और प्रौद्योगिकी, पर्यावरण और पृथ्वी विज्ञान, स्वास्थ्य और कृषि सहित प्राकृतिक विज्ञान के क्षेत्र में अनुसंधान, नवाचार और उद्यमिता के लिए उच्च स्तरीय रणनीतिक दिशा प्रदान करेगा। यह मानविकी और सामाजिक विज्ञान के वैज्ञानिक और तकनीकी इंटरफेस को बढ़ावा देने, निगरानी करने और ऐसे अनुसंधान और उससे जुड़े या उससे संबंधित विषयों के लिए आवश्यकतानुसार सहायता प्रदान करने के लिए भी प्रोत्साहित करेगा। एएनआरएफ अनुसंधान एवं विकास को बढ़ावा देगा और भारत के विश्वविद्यालयों, कॉलेजों, अनुसंधान संस्थानों और अनुसंधान एवं विकास प्रयोगशालाओं में अनुसंधान और नवाचार की संस्कृति को बढ़ावा देगा।
भारत सरकार का विज्ञान और प्रौद्योगिकी विभाग (डीएसटी), एएनआरएफ का प्रशासनिक विभाग होगा जो एक संचालक मंडल द्वारा शासित होगा, जिसमें विभिन्न विषयों के प्रतिष्ठित अनुसंधानकर्ता और पेशेवर शामिल होंगे। साथ ही, प्रधानमंत्री इस संचालक मंडल के पदेन अध्यक्ष होंगे। केंद्रीय विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी मंत्री और केंद्रीय शिक्षा मंत्री पदेन उपाध्यक्ष होते हैं। एनआरएफ का कामकाज भारत सरकार के प्रधान वैज्ञानिक सलाहकार की अध्यक्षता में एक कार्यकारी परिषद द्वारा नियंत्रित होगा।
एएनआरएफ उद्योग, शिक्षा जगत और सरकारी विभागों और अनुसंधान संस्थानों के बीच सहयोग स्थापित करेगा, और वैज्ञानिक तथा संबंधित मंत्रालयों के अलावा उद्योगों और राज्य सरकारों की भागीदारी एवं योगदान के लिए एक इंटरफेस की प्रणाली तैयार करेगा। यह एक नीतिगत संरचना तैयार करने और नियामक प्रक्रियाओं को स्थापित करने पर ध्यान केंद्रित करेगा, जो अनुसंधान एवं विकास पर उद्योग द्वारा सहयोग और उस पर व्यय में वृद्धि को प्रोत्साहित कर सके।
एएनआरएफ की स्थापना पांच वर्षों (2023-28) के दौरान 50,000 करोड़ रूपये की कुल अनुमानित लागत से जाएगी। 50,000 करोड़ रुपये की एएनआरएफ फंडिंग के तीन घटक होंगे – 4000 करोड़ रुपये का एसईआरबी फंड; 10,000 करोड़ रुपये का एएनआरएफ फंड, जिसमें से 10 प्रतिशत फंड (1000 करोड़ रुपये) इनोवेशन फंड के लिए रखा जाएगा। इनोवेशन फंड का उपयोग निजी क्षेत्र के साथ साझेदारी में अनुसंधान एवं विकास के लिए किया जाएगा और 36,000 करोड़ रुपये के कोष का योगदान उद्योग, परोपकारी संगठनों, अंतर्राष्ट्रीय संस्थानों आदि द्वारा दिया जाएगा।
केंद्र सरकार वर्तमान में एसईआरबी को प्रति वर्ष 800 करोड़ रुपये का फंड प्रदान करती है, जिसमें निजी क्षेत्र का बहुत कम या कोई योगदान नहीं होता है। प्रस्तावित एएनआरएफ में, सरकारी योगदान को 800 करोड़ रुपये से बढ़ाकर 2800 करोड़ रुपये प्रति वर्ष (~ 3.5 गुना) करने का प्रस्ताव है। प्रस्तावित एएनआरएफ में निजी क्षेत्र का योगदान 5 वर्षों के लिए 36,000 करोड़ रुपये (~ 7200 करोड़ रुपये प्रति वर्ष) किया जा रहा है। आने वाले वर्षों में वैश्विक अनुसंधान एवं विकास के क्षेत्र में भारत के नेतृत्व का लक्ष्य प्राप्त करने और प्रौद्योगिकी के क्षेत्र में भारत को आत्मनिर्भर बनाने की दिशा में एएनआरएफ की स्थापना भारत के सबसे परिवर्तनकारी कदमों में से एक साबित होगा।