उत्तरकाशी : रवांई लोक महोत्सव मात्र एक सांस्कृतिक आयोजन नहीं है, बल्कि यह रवांई घाटी की समृद्ध लोक परंपराओं, संगीत, नृत्य और देव संस्कृति का एक जीवंत प्रतिबिंब है। यह महोत्सव हर वर्ष आयोजित होता है और इस बार 26 से 28 दिसंबर 2025 तक तीन दिवसीय कार्यक्रम के रूप में संपन्न हुआ। यहां गीत, संगीत और नृत्य तो होता ही है, लेकिन इसके आयाम पूरी तरह से लोक कला की वास्तविकता से जुड़े होते हैं। यदि आप उत्तराखंड की प्रामाणिक लोक संस्कृति को करीब से अनुभव करना चाहते हैं, तो यह महोत्सव आदर्श स्थल है।

महोत्सव का महत्व और अनोखापन
रवांई लोक महोत्सव अन्य मेलों से अलग इसलिए है क्योंकि यह रवांई की लोक संस्कृति को मंच पर जीवंत रूप से प्रस्तुत करता है। यहां गीत-संगीत में लोक कला की सच्चाई झलकती है, जो आधुनिकता के दौर में विलुप्त हो रही परंपराओं को संरक्षित करती है। महोत्सव का मुख्य उद्देश्य अपनी लोक विरासत को दुनिया के सामने लाना है।


रवांई की अतिथि सत्कार की परंपरा यहां स्पष्ट दिखती है, जहां हर मेहमान का खुले दिल से स्वागत किया जाता है। इस वर्ष का आयोजन विशेष रूप से उत्साहजनक रहा, जिसमें स्थानीय कलाकारों, बच्चों और महिलाओं की भागीदारी ने इसे और भी यादगार बना दिया।

शुभारंभ: पहला दिन की जीवंत शुरुआत
महोत्सव का आगाज 26 दिसंबर को हुआ, जहां जिला पंचायत अध्यक्ष रमेश चौहान मुख्य अतिथि के रूप में उपस्थित थे। उन्होंने रिबन काटकर कार्यक्रम का उद्घाटन किया। रवांई घाटी की देव संस्कृति के अनुरूप, बाबा बौखनाग, रुद्रेश्वर महादेव, भदेयश्वर, मध्येश्वर और मां भद्रकाली जैसे देवताओं के देव निशाणों के साथ विधिवत पूजा-अर्चना की गई। पूजा के बाद हरियाली काटने की अनोखी परंपरा निभाई गई, जो पौष माह में हरियाली उगाने की चुनौती को दर्शाती है। लोक गायक राज सावन की प्रस्तुति ने दर्शकों को मंत्रमुग्ध कर दिया।
पहला दिन मुख्य रूप से स्थानीय स्कूलों के बच्चों को समर्पित रहा। विभिन्न विद्यालयों के बच्चों ने शानदार नृत्य और सांस्कृतिक प्रस्तुतियां दीं, जिन्होंने सभी को झूमने पर मजबूर कर दिया। भारत सरकार के सूचना एवं प्रसारण मंत्रालय की ओर से बच्चों और महिलाओं के लिए कुर्सी दौड़ और क्विज प्रतियोगिताओं का आयोजन किया गया। दिन की समाप्ति पर उत्साह और सकारात्मकता का माहौल बना रहा, जो उम्मीदों से कहीं अधिक था।

लोक वाद्यों की धुन और कवि सम्मेलन: दूसरा दिन का आकर्षण
27 दिसंबर को महोत्सव का दूसरा दिन रवांई समेत पूरे उत्तराखंड की लोक संस्कृति के महत्वपूर्ण हिस्से—वाद्य यंत्रों और कवि सम्मेलन—को समर्पित रहा। मुख्य अतिथि पूर्व जिला पंचायत अध्यक्ष दीपक बिजल्वाण थे, जबकि कार्यक्रम की अध्यक्षता ईड़क-पौंटी जिला पंचायत वार्ड से जिला पंचायत सदस्य सुखदेव रावत ने की। विशिष्ट अतिथि स्वराज विद्वान भी उपस्थित रहीं।
दिन की शुरुआत 21 ढोल, दमाऊ और रणसिंघों की सामूहिक धुन से हुई, जिसने पूरे आयोजन स्थल को कंपा दिया। लोक वाद्य यंत्र वादकों ने ढोल सागर में वर्णित देव धुनों को बजाकर माहौल बांधा। यह प्रस्तुति महोत्सव की पहचान है, जो लोक संगीत की ताकत को दर्शाती है। देहरादून से आए पत्रकार साथी और डॉ. जोशी ने भी सहयोग प्रदान किया, जो रवांई की अतिथि सत्कार की परंपरा को मजबूत करती है।

समापन दिवस: तीसरा दिन की यादगार प्रस्तुतियां और सम्मान
28 दिसंबर को महोत्सव का तीसरा दिन सबसे खास रहा, जो समापन नहीं बल्कि एक विराम मात्र था। मुख्य अतिथि विकासनगर विधायक मुन्ना सिंह चौहान थे, जबकि कार्यक्रम की अध्यक्षता पुरोला के युवा विधायक दुर्गेश्वर लाल ने की। इस मौके पर पूर्व विधायक केदार सिंह रावत, अजबीन पंवार और पूर्व जिला पंचायत व निगर पालिका अध्यक्ष जसोदा राणा मौजूद रहे। दिन भर रतियानंद पंवार, लोक गायक रुपी राणा, किशोर कुमार और जागर गायक संदीप कुमार की शानदार प्रस्तुतियां चलीं, जो देर शाम तक जारी रहीं।
सम्मान समारोह और महत्वपूर्ण घोषणाएं
तीसरे दिन सम्मान समारोह का आयोजन किया गया, जिसमें अंतरराष्ट्रीय चित्रकार जगमोहन बंगाणी, रग्बी खिलाड़ी महक चौहान, पत्रकार दिनेश रावत, साहित्य के क्षेत्र में दिनेश रावत, उद्यम के लिए युवा उद्यमी जयराज बिष्ट और स्वास्थ्य क्षेत्र में सेवानिवृत्त बाल रोग विशेषज्ञ डॉ. एलम सिंह भंडारी को सम्मानित किया गया। जगमोहन बंगाणी ने इसे अपने जीवन का सर्वश्रेष्ठ सम्मान बताया।

विधायक दुर्गेश्वर लाल ने अपनी विधायक निधि से महोत्सव के लिए 1.5 लाख रुपये देने की घोषणा की, जबकि विशिष्ट अतिथि गीता राम गौड़ ने 51 हजार रुपये का योगदान देने का ऐलान किया। इन घोषणाओं ने महोत्सव के भविष्य को मजबूत किया।
भविष्य की संभावनाएं
कुल मिलाकर, अल्प समय में आयोजित यह महोत्सव कुछ कमियों और चुनौतियों के बावजूद अत्यंत सफल रहा। समीक्षा से स्पष्ट हुआ कि यह रवांई की लोक संस्कृति को संरक्षित और प्रचारित करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है। महोत्सव न केवल स्थानीय कलाकारों को मंच प्रदान करता है, बल्कि आने वाली पीढ़ियों को अपनी जड़ों से जोड़ता है। यदि आप लोक कला के प्रेमी हैं, तो अगले वर्ष अवश्य शामिल हों—यह अनुभव जीवन भर याद रहेगा।

