Wednesday, December 18th 2024

दृष्टि-मूल्य एक नई सामाजिक व्यवस्था और आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस – श्रीवास्तव

दृष्टि-मूल्य एक नई सामाजिक व्यवस्था और आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस – श्रीवास्तव
देहरादून : आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस में भाव और भावना का अभाव होता है इसलिए  आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस के प्रयोग के साथ स्प्रीचुअल का ज्ञान जरूरी है। यदि किसी व्यक्ति में नैतिक मूल्य संवेदनाएं दया, करूणा, ईमानदारी, सत्यता और धैर्यता संबंधी मूल्य नहीं है तो आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस का कोई भी मूल्य नहीं है।
आने वाले समय में आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस के रूप में मशीनें आपस में बैठकर विचार-विमर्श करेंगी कि आज का मानव हमारे ऊपर बहुत हावी होता जा रहा है। मशीनें स्वंय में सुधार के लिए सक्षम होंगी। बिल गेट्स लिखते है कि आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस का अत्यधिक प्रयोग से मानव समाज कि गरिमा गिरेगी। सन् 1997 में शतरंज चैम्पियन गैरी कास्प्रोव को सुपर कम्प्यूटर ने हरा दिया। सउदी अरब के रोबोट एनरायड मोहम्मद ने मार्च 2024 में एक महिला एंकर के साथ छेड़छाड़ कर दी। इन घटनाओं से आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस का भविष्य समझा जा सकता है।
आज कि पीढ़ी आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस का प्रयोग करके केवल कापी-पेस्ट कर रहा है। जबकि आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस का प्रयोग करते समय इसमें हमें अपनी नवीनता, सृजनात्मकता जैसे भाव-भावना का प्रयोग करना जरूरी होता है। इस ज्ञान के सागर में हमें क्या लेना है क्या छोड़ना है इसकी जानकारी हमें आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस से नहीं मिलेगी। किसी भी टेक्नोलाॅजी का प्रयोग करते समय श्रेष्ठ उद्देश्य और मूल्य को सामने रखकर करना चाहिए। सामाजिक मूल्य से हमें यह जानकारी मिलती है कि हमें नई-नई चीजों का उपयोग और तकनीक का उपयोग लोक हित में कैसे करें। इसकी जानकारी स्प्रीचुअल इंटेलिजेंस से मिलती है जिसको धरातल पर लाने के लिए आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस की मदद ली जा सकती है।
आध्यामिक मूल्य हमें एक-दूसरे के भावों को सुनने-समझने की शक्ति देता है। लेकिन आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस यह कार्य नहीं कर सकता। आत्मिक प्रज्ञा बढ़ने पर आन्तिरिक खुशी में वृद्धि होती है जिसके प्रभाव से श्रेष्ठ कार्य स्वतः होने लगता है, इसके परिणामस्वरूप लोगों की दुआएं मिलने लगती हैं लेकिन यह कार्य मशीन या आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस नहीं कर सकता है। स्प्रीचुअल इंटेलिजेंस के बिना आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस का कोई मूल्य नहीं है। स्प्रीचुअल इंटेलिजेंस ही हमारी भारतीय संस्कृति का धरोहर है। स्प्रीचुअल इंटेलिजेंस का चाहे जितना विकास हो जाए लेकिन स्वतंत्र रूप में इसका कोई मूल्य नहीं है। स्प्रीचुअल इंटेलिजेंस ही वह शक्ति है जिससे आने वाली समस्याओं एवं परिस्थितियों से निपटने में सक्षम बनाती है।
जीवन में सफलता के लिए बुद्धि एवं भावना में संतुलन होना आवश्यक है। बुद्धि में कितनी भावना होनी चाहिए अथवा भावना में कितनी बुद्धि होनी चाहिए इसकी समझ स्प्रीचुअल इंटेलिजेंस से मिलता है। अर्थात हमें बुद्धि एवं भावना का उपयोग कब, कैसे, कहां, क्यों और कितना करना चाहिए, इसकी जानकारी स्प्रीचुअल इंटेलिजेंस से मिलती है। अन्य शब्दों में हम आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस का मदद हम अवश्य लें लेकिन काॅपी-पेस्ट के जरिए नहीं बल्कि अपनी भाव और भावना का भी उपयोग करना चाहिए।
यदि हम केवल आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस पर निर्भर हो जाएं तो बच्चों की समझ का नैसर्गिक विकास नहीं होगा बल्कि मशीनी विकास होगा। जैसे यदि किसी बच्चे ने अपनी मां के साथ बुरा व्यवहार कर दिया तो इसके सापेक्ष हमें माफी कैसे मांगनी है, इसकी जानकारी आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस से नहीं मिलेगा  बल्कि स्प्रीचुअल इंटेलिजेंस से मिलेगा।
आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस का मीडिया में अत्यधिक प्रयोग किया जा रहा है लेकिन यदि हम इसके साथ स्प्रीचुअल इंटेलिजेंस का प्रयोग करें तो मीडिया का अंधकार पक्ष मिट जायेगा और बदला हुआ सकारात्मक स्वरूप सामने होगा। आज आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस के प्रयोग से मीडिया संस्थान सहित अनेक साफ्टवेयर कम्पनी बढ़ी मात्रा में छंटनी कर रही हैं क्योंकि इंटेलिजेंस की उपेक्षा के कारण भाव-भावना का प्रयोग नहीं किया  जा रहा है।
आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस का गुलाम बनने के स्थान पर स्वंय की क्षमता पर भरोसा रखना उचित होगा इसलिए आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस का उसी स्थान पर उपयोग करना सही होगा जहां इसकी आवश्यकता है। अनावश्यक रूप से आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस का उपयोग करने पर हम मशीन के गुलाम बन जायेंगे।

लेखक : मनोज श्रीवास्तव, उप निदेशक सूचना एवं लोकसम्पर्क विभाग उत्तराखंड देहरादून ।