हर कार्य में ईमानदारी और वफादारी अर्थात ऑनेस्टी

हर कार्य में ईमानदारी और वफादारी अर्थात ऑनेस्टी
 
देहरादून : ऑनेस्ट आत्मा को स्वत: ही दूसरे के  प्यार का अनुभव होगा। बड़ों का, चाहे छोटों का, चाहे समान वालों का, विश्वास-पात्र अनुभव होगा। ऐसे प्यार के पात्र वा विश्वास के पात्र कहाँ तक बने हैं? यह भी चेक करो। ऐसे चलाओ नहीं कि इसके कारण मेरे में विश्वास नहीं है, तो मैं विश्वासपात्र कैसे बनूँ, अपने को पात्र बनाओ। कई बार ऐसे कहते हैं कि मैं तो अच्छा हूँ लेकिन मेरे में विश्वास नहीं है। फिर उसके कारण लम्बे चौड़े सुनाते हैं। वह तो अनेक कारण बताते भी हैं और कई कारण बनते भी हैं। लेकिन ऑनेस्टी दिल की, दिमाग की भी ऑनेस्टी चाहिए। नहीं तो दिमाग से नीचे ऊपर बहुत करते हैं। तो दिल की भी ऑनेस्टी, दिमाग की भी ऑनेस्टी। अगर सब प्रकार की ऑनेस्टी है तो ऑनेस्टी अविश्वास वाले को आज नहीं तो कल विश्वास में ला ही लेगी। जैसे कहावत है सत्य की नांव डूबती नहीं है लेकिन डगमग होती है। तो विश्वास की नांव सत्यता है, ऑनेस्टी है तो डगमग होगी लेकिन अविश्वास-पात्र बनना अर्थात् डूबेगी नहीं इसलिए सत्यता की हिम्मत से विश्वासपात्र बन सकते हो। पहले सुनाया था ना कि सत्य को सिद्ध नहीं किया जाता है। सत्य स्वयं में ही सिद्ध है। सिद्ध नहीं करो लेकिन सिद्धि स्वरूप बन जाओ।
मनोज श्रीवास्तव
चलते तो सभी हैं लेकिन चलने में भी अनेक प्रकार की भिन्नता हो जाती है। कोई सहज और तीव्रगति से चलते हैं क्योंकि उस व्यक्ति को श्रीमत(श्रेष्ठ मत) सदा स्मृति में रहते है। यह है नम्बरवन ऑनेस्टी। नम्बरवन आत्मा को सोचना नहीं पड़ता कि यह श्रीमत है या नहीं, यह राइट है या रांग है, क्योंकि उसे हर बात स्पष्ट है। दूसरी आत्माओं को स्पष्ट न होने के कारण कई बार सोचना पड़ता है इसलिए तीव्र गति से मध्यम गति हो जाती है। साथ-साथ कोई सोचता है, कोई थकता है। चलते सभी हैं लेकिन सोचने और थकने वाले सेकेण्ड नम्बर हो जाते हैं।  प्रश्न है कि थकते क्यों हैं? क्योंकि चलते-चलते श्रीमत ( श्रेष्ठ मत) में मनमत( मन  मर्जी )परमत ( दुनियादारी )मिक्स कर देते हैं। इसलिए स्पष्ट और सीधे रास्ते से भटक टेढ़े बांके रास्ते में चले जाते हैं। रिजल्ट में फिर भी वापस लौटना ही पड़ता है क्योंकि मंज़िल का रास्ता एक ही स्पष्ट सीधा और सहज है। सीधे को टेढ़ा बना देते हैं। तो आप सोचो टेढ़ा चलने वाला कहाँ तक चलेगा, किस स्पीड से चलेगा? और परिणाम क्या होगा? थकना और निराश होकर लौटना  इसलिए अपनी चाल और गति दोनों को चेक करो। तो समझा, ऑनेस्टी किसको कहा जाता है?
ऑनेस्ट आत्मा की और निशानी है – वह कभी किसी भी खज़ाने को वेस्ट नहीं करेगा। सिर्फ स्थूल धन वा खज़ाने की बात नहीं है लेकिन और भी अनेक खज़ाने आपको मिले हैं। ऐसे ही संकल्प का खज़ाना, ज्ञान धन का खज़ाना, सर्व शक्तियों, सर्व गुणों का खज़ाना वेस्ट नहीं करेंगे। अगर सर्व शक्तियों, सर्व गुणों व ज्ञान को स्व-प्रति वा सेवा-प्रति काम में नहीं लगाया तो इसको भी वेस्ट कहा जायेगा।  जो ऑनेस्ट होता है वह सिर्फ धन को प्राप्त कर रख नहीं देता। ऑनेस्ट की निशानी है खज़ाने को बढ़ाना। बढ़ाने का साधन ही है कार्य में लगाना। अगर ज्ञान-धन को भी समय प्रमाण सर्व आत्माओं के प्रति या स्व की उन्नति के प्रति यूज़ नहीं करते हो तो खज़ाना कभी भी बढ़ेगा नहीं। ऑनेस्ट मैनेजर या डायरेक्टर उसको ही कहा जाता है जो कोई भी कार्य में प्रॉफिट करके दिखाये। प्रगति करके दिखाये। अपना तन, मन और स्थूल धन – यह तीनों ही परमात्मा का दिया हुआ खज़ाना है। आपने तन, मन, धन वा वस्तु, जो भी थी वो अर्पण कर दी। संकल्प किया कि सब कुछ तेरा, ऐसा नहीं थोड़ा धन मेरा थोड़ा परमात्मा का, थोड़ा धन किनारे रखें, जेब खर्च रखा है, थोड़ा-थोड़ा आईवेल के लिए किनारे करके रखा है। आइवेल के लिए किनारे कर रखना यह समझदारी है!  जितना ही मेरा होगा उतना ही जहाँ मेरा-मेरा होता वहाँ बहुत बातें हेरा-फेरी होती हैं क्योंकि उसको छिपाना पड़ता है।

लेखक : मनोज श्रीवास्तव, उपनिदेशक सूचना एवं लोक सम्पर्क विभाग उत्तराखंड

मुरली, अव्यक्त बाप दादा 18 दिसंबर 1991